Breaking

Wednesday, January 30, 2019

संत सेना महाराजांच्या शरीर पेहरावाचे वर्णन .

                                                   

संत  सेना महाराजांच्या शरीर पेहरावाचे वर्णन.

संत  सेना महाराजांच्या शरीर पेहरावाचे वर्णन .संत सेना महाराज माहिती



     संत  सेना  महाराजांच्या  शरीर  पेहरावाचे  वर्णन  ह. भ. प. दासगनुनी  आपल्या  कटिबंध  या  चरित्र  आख्यायनात  केले  आहे.  ते  म्हणतात

       गौर  हा  तनुचा  वाण,  भरीव  ती  मान,  वळविली  छान  कानसुलावरती ।  झुलपेति  वाकडी  भव्यजयाची  छाती ।।
       धोकटि असे  बगलेत,  दर्पणासहित,  असे  कंठात  माळ  तुळशीची ।  डोईस  पिळयाची  पगड़ी  पित  रंगाची ।।
       सलकड़े  नसे  मनगटी,  शिपाई  धाटी  जरीचा  कटी  कसियला  शेला ।  पायात  चढवू  नोडा  अंगी  अंगाला ।।

      
 करकरा  चढावू  बाजे  चालता ।
       बाणली  जयाच्या  अंगी  लीनता ।
       दवड़ीना  काळ  केव्हाहीं  तो  वृथा ।
       आर्तदिय  अंतरी,  मुख्यभितरि,  नाम  हे  गाजे ।
       विठुराया  म्हणत  जणू  नच  लागे ।।
 
संत  सेना  महाराजांचा  गौर  वर्ण  होता.  शरीरयष्टी  बळकट  होती.  राजसेवकास  शोभतील  असे  वस्त्र  सेनाजी  वापरित।  त्यांचे  अंतकरण  शुद्ध  असून  ते  विनाकारण  वेळ  वाया  घालवत  नसत.  प्रभुगुण  भजन  करण्यात  आपला  वेळ  खर्च  करत.
          
वाचे  म्हणा  नारायण ।  सेना  म्हणे  क्षण ।  न  जाऊ  दया ।।


संत  सेना  महाराजांचा  पोशाख :-

       श्री संत  सेना  महाराजांची  राजस्थानातील  प्रतिमा  दाढ़ीधारी  होती,  उंच  राजस्थानी  पगड़ी,  लांबलचक  सदरा  व  आखूड  पंचा (धोतर)  असा  त्यांचा  पोशाख  होता.  मात्र  महाराष्ट्रात  आगमन  झाल्यानंतर  त्यांनी  महाराष्ट्रीयन  संतांचा  पोशाख  धारण  केलेला  होता.  व  तोच  पोशाख  त्यांनी  अखेर  पर्यत  कायम  ठेवलेला  होता.