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Friday, June 26, 2020

संत सेना महाराजांच्या अंगी असणारे कवित्व आणि उच्च कोटीचे विठत्व .

                                     सेना महाराजांचे कवित्व आणि विट्ठत्व            | Biography Of Sant Sena Maharaj

सेना महाराजांचे कवित्व आणि विट्ठत्व / श्री संत सेना महाराज चरित्र / Biography Of Sant Sena Maharaj
सेना महाराजांचे कवित्व आणि विट्ठत्व



        सेना  महाराजांचा  अभंग  संग्रह  माढ्याचे  श्री भ. कृ . मोरे  यांनी इ. स. १९४५ साली प्रसिद्ध केला.  सेनाजींचे  २५०  
चे वर  व  १२००  ते  १५०० ओळींचे  अभंग  मराठी  भाषेमध्ये  उपलबद्ध  झाले  आहेत. ह्या  अभंगाचे  पुनर्मुद्रण  झाले  पाहिजे,  त्यास  प्रसिद्धी  मिळाली  पाहिजे.  प्रत्येक  नाभिक  बंधूंच्या  घरी  त्याची  प्रत  असली  पाहिजे.

               सेनाजींनी  १) रूपपर  २) नामपर  ३) मोक्ष, तुच्छ्तापर  ४) किर्तनपर  ५) मागणीपर  ६) करुणापर  ७) भेटीपर  ८) सलगीपर  ९) भक्त वत्सलपर  १०) विठ्ठलपर  ११) स्थितीपर  १२) उपदेशपर १३) संतपर  १४) एकविश्व्पर  १५) निर्वाणीचा  उपदेशपर  १६) संतश्रेष्ठ  स्तवनपर  १७) धंद्यानुरूप १८) व्यावहारिक  १९) स्फुट  २०) गौळणी  २१) काळा  २२) वेणूनादपर  २३) वासुदेव  २४) त्रिंबक महात्म्य २५) आळंदी  महात्म्य  २६) सासवड  महात्म्य  २७) आरती  इत्यादी  अनेक  विषयांचा  त्यामध्ये  परामर्श घेतला  आहे.  सेनाजींचे  काव्य  रसाळ,  ओजस्वी  व  श्रेष्ठ  दर्जाचे  आहे.  असे  त्यांच्या  अभंगादी  काव्यावरून  दिसून  येते.  त्यात  स्वानुभाव,  अंतःकरणाची  उत्कंठता  व  ईश्वरभक्ती  यांचा  सुरेख  संगम  झाल्याचे  आढळून  येते.  संत  सेनाजींचे  अभंग  मौलिक  वाङ्मय  आहे  यात  तिळमात्र  शंका  नाही.

             संत  सेना  महाराजांनी  हिंदी,  मराठी,  राजस्थानी,  गुरुमुखी  या  भाषांतून  काव्यरचना केली.  त्यांच्या  काव्यातील  धर्म,  व्यवहार,  अध्यात्म  यासंबंधीचे  विचार  प्रकट  होत  होते.  त्यांच्या ठायी  कवित्वाबरोबरच  विठ्ठत्वहि  श्रेष्ठ  दर्जाचे  वसत  होते.  त्यांचा  धर्मवेदांतपर  
वाङ्मय  व्यासंग  मोठा असावा  हे  सहज  कळून  येते.  त्यांचे  भाषेवरील  प्रभुत्वही  चांगले  होते,  हे  निदर्शनास  येते.
           उदाहरणादाखल  काही  हिंदी  व  गुरुमुखी (पंजाबी)  भाषेतील  एक  एक पद  भाषांतरासहित  पुढे  दिले  आहेत.


१) हिंदी  पद -

         रामनाम  मै   नायी  तेरा.  चामकी  छुरहारी,  चामको  बाधी,  चौमे  लागो  डारा .  चौमे  मुंडे, चौमे  मुंडावे,  समुई  देखी  मनमारा.  तब  कंधा  टुटो,  तेल  बढवो,  हुइगो  सांझ  सबेरा. देता  है  सो दे  मेरे  भाई,  आई  घरकी  बेरा. तब  चिमटा  नहरण  और  कतरणी,  दरपण  साहेब  तेरा.  सेन भगत मुजरेको  आये,  आदी  अतंके  चेरा.

भावार्थ-

           रामनाम  घेणारा  मी   तुमचा  न्हावी  आहे.  कातड्याचा  वस्तरा  चामड्यात  बांधला  आणि चामड्यावर  चालविला  कातडेच  चामड्याकडून  शमश्रू  करून  घेते.  माझ्या  मनाने   हे  रहस्य ओळखले  आहे,  नंतर  खांदा (मान )  मोडला,  तेल  चोळले  या  कामातच  संध्याकाळ  झाली.  बाबारे जे  आमचे  असेल  ते  दे.  आता  घरी  जाण्याची  वेळ  आली.  तेव्हा  चिमटा  नरानी,  कातर  आणि तुझा  आरसा  घेऊन  सेनाभक्त  आदिअंती  तुझा  दास  मुजरा  करण्यास  आला  आहे.


 २) गुरुमुखी (पंजाबी)  पद-

          धूपदीप,  धृत  सांज  आरती,  वारंने  नाऊ  कमलापती.  मंगलाहर  मंगला  नित्य  मंगल  राजा रामरावको.  कुतमदियारा  बिमलवाती,  तू  हि  निरंजन  कमलापती.  रामभक्त  रामानंद  जाणे, पुरणपरमानंद  बरवाने.  मदन  मूर्तमम  तार  गुविंदे,  सेन  म्हणे  मज  परमानंदो .

भावार्थ-

        धूपदीप  तुपाची  आरती  करून  आम्ही  आमचे  प्राण  तुमच्यावरून  ओवाळून  टाकतो.  मंगल  करणारे  सदापवित्र  मनाने  पूजन  करूया,  कर्तव्याच्या  दिव्यात  विशुद्धतेच्या  भावातून  मजप्रती  तू प्रत्यक्ष  निरंजन (डाग नसलेला )  तुला  श्रेष्ठ  रामभक्त  असा  रामानंद  हॅव  ज्ञानी  पूर्ण  परमानंद स्वरूप  मदन  गोविंद  हा  मला  तारणारा  आहे.  सीएनजी  म्हणतात  त्यांना  वंदन  करा.

               संत  सेना  महाराज  हे  उत्कृष्ट  कवी  होते,  उत्कृष्ट  भाषांतरकार  होते,  त्याचबरोबर  ते उत्कृष्ट  नर्तक  देखील  होते.  आषाढी,  कार्तिकी  वारीत  व  इतर  कालावधीत  श्री विठ्ठल  मंदिरासमोर महाराष्ट्रीयन  संतांची  कथा  कीर्तनासाठी  गर्दी  होत  असे.  परंतु  सेनाजी  श्री रुक्मिणी  मातेच्या मंदिरासमोर  कथा  कीर्तने  करीत.  पायात  घुंगरू  बांधून  नृत्यविष्कारासहित  ते  कीर्तन  भजन भक्तांसमोर  सादर  करीत.  त्यांचे  नृत्यासहित  कीर्तन  भजन  ऐकण्यासाठी  वारकऱ्यांची  गर्दी  होत असे.