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Friday, January 18, 2019

श्री संत सेना महाराज आणि आचार्य रामानंदाचा परिचय

                                                                     
आचार्य रामानंदाचा परिचय 

श्री संत सेना महाराज आणि आचार्य रामानंदाचा परिचय
sant sena maharaj



                 रामानंद  स्वामी  हे  सेनाजींचे  गुरु  होते.  हिंदू  धर्माचा  श्रेष्ठ  संरक्षक  म्हणून  त्यांची  कीर्ति  अजरामर  आहे.  त्यांच्या  अनुयायास  रामावत  म्हणत  असत.  त्यांची  मुख्य  गादी  जयपुरमधील  गलमा  या  ठिकाणी  होती.  रामानंद  स्वामी  हे  त्यांच्या  सांप्रदायाचे  आचार्य  होते.  काशी  हे  रामानंदाचे  प्रचार  कार्याचे  ठिकाण  रामदत्त  हे  त्यांचे  मूळ  नाव,  सुशिला  ही  त्यांची  माता,  वयाच्या  बाराव्या  वर्षी  सर्व  शास्त्राध्ययन  केले.  राघवानंद  हे  रामानंदाचे  गुरु.  रामानंद  अल्पायुषी  होते.  पण  गुरुप्रसाधाने  समाधी  लावून  मृत्युपासून  त्यांनी  सुटका  करुण  घेतली.

                 हिंदू  धर्मातील  जातीपाती  या  नियमांना  महत्व  न  देता  केवळ  राम  नाम आणि  भक्ती  सांप्रदायात  महत्व  देत  असत.  गोपाळ  कृष्ण  उपासने  ऐवजी  रामभक्ती  ही  त्यांच्या  सांप्रदायातील  प्रमुख  गोष्ट  होती.  हिंदू  धर्मातील  दलित  समाजाविषयी  कळकळ  हे  वैष्णव  सांप्रदायाचे  मुख्य  अंग  आहे.  ब्राम्हण,  वैश्य,  क्षत्रिय,  शुद्र,  यांच्यातील  भेद  ते  मानित  नव्हते.  लोक  कोणत्याही  वर्णाचे  असोत.  त्यांनी  एका  ठिकाणी  आहार - विहार  करण्यास  हरकत  नाही  असे  ते  म्हणत  नवीन  धर्म  प्रचारार्थ  त्यांनी  प्राकृत  मातृभाषेचा  उपयोग  करण्याचे  धोरणही  स्वीकारले  होते.  नरसिंह  मेहतांचे  खालील  पद  प्रसिद्ध  आहे.


                 वैष्णव  जन  त्यालाच  म्हणावे ।  जो  परपीड़ा  जाणीरे ।।
                 सकलामाजी  राही  वंदी ।  निंदा  न  करि  कुणाचीरे ।।
                 असत्यवाणी  कधी  न  बोले ।  परधन  हाती  न  धरिरे ।।
                 कृष्णनामी  जो  घेई  समाधी ।  तिथे  त्यांच्या  शरीरिरे ।।
                 नरसी  म्हणतो  दर्शन  त्यांचे ।  शरणार्थी  जन  तारीरे ।।