Breaking

Wednesday, January 16, 2019

संत सेना महाराजांच्या आई च्या मनात भक्तीची भीती.

                                                                

संत सेना महाराजांच्या आई च्या मनात भक्तीची भीती.

भक्तीची भीती 

            संत  सेना   महाराजांच्या  बालपणीच्या  लिला  पाहून  प्रेमकुंवर  बाईंच्या  मनात  या  साधुसंतांच्या  नादाने  हा  आपला  सेनाजी  दूरदेशी  निघून  तर  जाणार  नाही,  साधु  तर  बनणार  नाही  अशी  भीती  निर्माण  होई  म्हणून  त्यास  शाळेत  घालून  विध्याभ्यास  शिकविण्याचे  त्यांनी  मनात  योजिले.  दरबारात  सेनाजींची  मानाच्या  जागी  मोठेपणी  नेमणुक  व्हावी,  त्यानी  साधु  भक्तीचे  वेड  बंद  करावे,  म्हणून  त्या  प्रयत्न  करू  लागल्या  पुढे  सेनाजी  मोठेपणी  राजगुरु  व  श्रेष्ठ  संत  सेनापती  ही  झाले.  आईची  अभिलाषा  पूरी  केली  आणि  स्वताची  आतंरिक  ओढ़ही  तृप्त  केली.

शाळेत प्रवेश 

        महाराणा  रामरायांचे  देवीदासवर  फार  प्रेम  होते.  ते  राणाजींचे  अत्यंत  आवडते  नाभिक  होते.  त्यांचा  एकुलता   एक  मुलगा  सेनाजी  महाराणीस  फार  आवडे.  प्रेमकुंवर  बाईंची  इच्छा ध्यानी  घेऊन  सेनाजीना  गावठी  शाळेत  घातले.  राणाजीस  ही  फार  आनंद  झाला.  इतर  मुलांपेक्षा  हा  मुलगा  वेगळा  आहे.  हे  गुरुजींनी  जाणून  घेतले  होते.  सेनाजींची  बुद्धि  वयाच्या  मानाने  खूपच  विकसित  झालेली  होती.  ते  शाळेत  ही  शिकता  शिकता  मधेच  उठून  भजन  म्हणत  असत  विद्ययानबरोबरच  घरात  त्या  कृष्णमूर्तीचे  ते  गुणगानही  करीत  कृष्णभजन  साधूंच्या  वागणुकीचे  आकलन,  धर्मग्रंथाचे  संकलन   व  त्याप्रमाणे  वर्तन  ही  त्यांची  आवड  काही  कमी  होत  नव्हती. 
             विद्येची  वाढ  होत  चालली,  लौकिक,  विद्या,  धार्मिक  विद्या  या  सारख्या  अनेक  विषयातील  विधेतही  ते  पुढे  सरकावले.