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Wednesday, January 2, 2019

भारतीय धर्म प्रवृत्ती आणि विकृती

                                                                                                                                                 
भारतीय धर्म प्रवृत्ती आणि  विकृती

भारतीय धर्म प्रवृत्ती :-  


              भारत  हा  धर्म  प्रवृत्त  देश आहे.  जन्म - मृत्यू,  स्वर्ग - नर्क,  पाप - पुण्य,  निति - अनीति,  आचार - विचार,  आत्मा  पूर्णजन्म,  सृष्टीची  उत्तपत्ती,  आदि - अंत  अनंत  इत्यादी  संबधी  भारतात  गहन  चिंतन,  मनन  व  प्रकटन  झाले  आहे.  आणि  म्हणून  भारतीय  संस्कृती  प्राचीन  व  सर्व  श्रेष्ठ  ठरली  आहे.  धार्मिकता  हा  भारतीय  जीवनाचा  स्थायीभाव  आहे.  धर्मपारायण  हेच  मानवासाठी  श्रेष्ठ  जीवन  आहे  असा  भारतीय  जनतेचा  विश्वास  आहे.  धर्मपारायण  याचा  अर्थ  हे  विश्व  माझे  घर  असून  विश्वातील  सर्व  स्त्री - पुरुष  हे  भगिनी  बंधू  आहेत.  त्या  सर्वाना  सुखी,  समृद्ध  व  संस्कारमय  जीवन  लाभावे  व  सर्वामध्ये  सहकार  बंधूभाव  नांदावा  असा  उदात्त  तात्विक  स्वरुपाचा  आहे.  सर्वानी  न्यायबुद्धीने  वागावे  परस्पऱांसाठी  त्याग  करावा  असा  धर्मपारायणतेचा  अर्थ  आहे.

धर्माची विकृती :-

                  निवृत्तीपर  व  प्रवृत्तीपर  धर्म  प्रवृत्ती  मध्ये  समतोलपणा  राहिला  नाही  समाजाची  प्रस्थापना  समानता,  न्याय,  बंधुत्व  यावर  झाली  असताना  रूढीप्रधान,  शब्दप्रधान,  श्रेष्ठ  कनिष्ठ  प्रधान,  वर्णाश्रम  प्रधान  संस्कृतीस  प्राधान्य  दिल्याने  विकृत  धर्म  निर्माण  झाला  आणि  समाजातील  समता  नाहीशी  होवून  विषमतेचा  वरचष्मा  झाला   न्याय  जावून  अन्याय  आला.  मूळ  भारतीय  संस्कृतीचे  तेज  लोप  पावले.  ब्राह्मण,  क्षत्रिय,  वैश्य,  शुद्र  यांच्यामध्ये  एकवाक्यता  राहिली  नाही.  एका  वर्णाकडुन  दुसऱ्या  वर्णाचे  शोषण  होत  राहिले  पुढे  शेकडो  वर्षांनी  भारतावर  परकीय  सत्ता  गाजवू  लागले  व  भारतीयांवर  धर्मविकृतीतून  अत्याचार  सुरु  झाले.  त्यावेळी  दिल्लीवर  राज्य  करणारे  सुलतान  जलालुद्दीन  खलजी,  त्याचा  पुतण्या  अल्लाउद्दीन  खलजी  व  त्याचा  वजीर  मलिक  काफूर  व्  त्यांच्या  सहकार्यानी  संपूर्ण  भारतभर  धर्म  प्रचाराची  व  साम्राज्य  विस्ताराची  तयारी  जोरात  चालवली  होती  विशेषता:  राजस्थान  आणि  महाराष्ट्रातील  हिंदू  राज्ये  नष्ट  करुन  साम्राज्य  वाढवण्याचा  विचार  सुरु  झालेला  होता.  राजस्थानातील  चितोड़ चे  राणा  रत्नसिंह  आणि  सिसोदिया चा राणा  लक्ष्मणसिंह  यांची  राज्ये  लढाईत  नष्ट  झाली  आणि  महाराष्ट्रात  देवगिरि चे  राजे  रामराव  यादव  यांचे  राज्य  गेले  संपूर्ण  उत्तर  भारत  आणि  महाराष्ट्र  परकीयांच्या  अत्याचाराखाली  भरडू  लागला  त्यातच  भागवत  धर्मात  वर्ण  व्यवस्थेने  आपला  पाया  भक्कम  केल्याने  मूळ  स्वरुप  अंतर्धान  पावले.